रक्षाबंधन विशेष :भाई-बहन की कविता : गुड़िया की शादी

गुड़िया की शादी

अनिल श्रीवास्तव 

 

एक देहाती मास्टर ने

अमरीका फोन लगाया

अपने बेटे को आधी रात

नींद से जगाया

 

बेटे ने पूछा

कैसे हैं पिताजी

बाप ने पूरे घर का हाल सुनाया

 

गठिये के दर्द से तेरी मां बेहाल है

दम्मे से मेरा अपना जीना मुहाल है

 

गुड़िया की छुड़ा दी है पढ़ाई-लिखाई

अच्छे से घराने  में तय की है सगाई

 

गुड़िया के रंगरूप उनको खूब भाए हैं

पर दहेज के लिए ससुरे मुंह बाए हैं

 

मुझसे बोले तुम्हारे बेटे ने लाखों कमाए होंगे

फटेहाल रहते हो पर तकिए में नोट छुपाए होंगे

 

ना मैंने अबतक मांगा

न तूने कभी भेजा

पर आज वक्त आया है

जो बन पड़े वह दे जा

 

 

 

बेटा बोला फोन पर सब कुछ नहीं बताऊंगा

अगले हफ्ते सीधा गांव आ जाऊंगा

 

 

मैं जानता हूं गुड़िया के लिए आप कितना परेशान हैं

पर चिंता मत कीजिए हर समस्या का समाधान है

 

 

बेटे का बल पाकर बाप का यौवन लौट आया

साइकिल उठाई और पूरे गांव का चक्कर लगाया

 

सुनो भाई नंदू कुम्हार

मेरी छत के खपड़े फेर देना यार

 

बड़े दिनों बाद मिले हरकू बढ़ई

किवाड़ कितना गल गया है बदल दे भई

 

चरकू मेरी चप्पल रह गई है आधी

अब जूता ही बनाना- घर में पड़ी है शादी

 

लाला जी मेरे उधार का

झटपट हिसाब लगाना

सौ पचास  में मत उलझना

मोटा मोटी बताना

 

मुन्ना आ रहा है अगले हफ्ते

घी चीनी और चायपत्ती

जरा घर भिजवाना

 

सातवें दिन सुबह-सुबह

मास्टर जी जागे

तभी गांव के कुछ बच्चे

आए भागे-भागे

 

स्टेशन पर आज एक

शहरी उतरा है

टमटम का लंबा वाला

रास्ता पकड़ा है 

 

गदगद मास्टरजी पत्नी से बोले

देखो अब मुन्ना कमा रहा है

स्टेशन इतना पास है पर

टमटम से आ रहा है

 

टमटम गांव के अंदर आया

लड़कों ने मुफ़्त का  झूला बनाया

पिल्लों ने घोड़े का विरोध जताया

औरतों ने झांककर पता लगाया

अकेला आया  मेम  नहीं लाया

 

मुन्ना टमटम से नीचे आया

मां बाप को सिर नवाया

गुड़िया को सदा की तरहा

जीभ निकालकर चिढ़ाया

 

नहाया धोया खाया पिया

थकान भरी थी ,दो घंटे सोया

 

आंख खुली तो बाबूजी

 कमरे में टहल रहे थे

मां के बूढ़े हाथ  

लगातार पंखा झल रहे थे

दालान मे  व्यग्र लालाजी और गांववाले  

हुक्के से धुआं उगल रहे थे

 

बाबूजी बोले ज्यादा इंतजार मत कराओ

लाख - दो लाख क्या लाए हो जल्दी बताओ

 

तुम्हारे नाम पर ही इतने बड़े घर का रिश्ता पाया है

तुम्हारे भरोसे इन सब से कर्ज उठाया है 

अब आगे का काम तुम सम्हालो 

 भाई का फर्ज निभाने का 

तुम्हारा आज वक्त  आया है

 

बेटा बोला बाबूजी बस कीजिए

 मैं खुद समझदार हूं

गुड़िया के लिए पैसा त क्या 

जीने मरने को तैयार हूं

पर क्या करूं आजकल 

आर्थिक मंदी की मार से लाचार हूं

मेरे शेयरों के भाव नीचे गिर गए हैं

बैंकों के करजे मेरे ऊपर चढ़ गए हैं

दो गुना काम करके आधा कमा रहा हूं

बड़ी मुश्किल से करजे की किश्तें चुका रहा हूं

 

मास्टरजी झल्लाए - बंद कर अपनी गंदी जबान

मैं समझ गया तू आगे क्या बोलेगा शैतान

 

तू पुरखों की जमीन पर अपना आधा हक बताएगा

फिर अपना हिस्सा बेच कर भाग जाएगा

 

फिर मैं भूखे पेट खाऊंगा गांव वालों से ताना

ऐसी जिंदगी से अच्छा होगा फांसी लगा के मर जाना

बेटे मां बाप का दुख हर लेते हैं

कुछ पैसे के लिए उन्हीं को ज़हर देते हैं

 

बेटा धरती में गड़ गया

फूट पड़ी रुलाई

पर्दे की ओट से

गुड़िया निकल के आई

 

हाथ जोड़कर बोली बाबूजी

भैया को कुछ ना कहना

इनका दिल कितना निर्मल है

जानती है इनकी बहना

 

मैं जानती हूं भैया के यहां क्या चल रहा है

मंदी की तेज आग में अमेरिका जल रहा है

 

धंधे बंद हो गए हैं

घर बार की लग गई है बोली

कितनों ने तो हार कर

खुद को मार ली गोली

इस हाल में भी भाई में

लड़ने का जुनून है

गर्व कीजिए बाबूजी

यह आपका ही खून है

 

आज थोड़ा समय ही तो

चाहिए मेरे भाई को

रोक दीजिए दो  साल

मेरी इस सगाई को

 

मास्टर जी ने बेटी को

गले लगाया

धन्य है वो देश जिसने

ऐसी बहनों को पाया

 

जब तक है ये धैर्य

ये त्याग ये बलिदान

तब तक हर मंदी से

बचा रहेगा हिंदुस्तान

तब तक हर मंदी से

बचा रहेगा हिंदुस्तान

 


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