शेक्सपीयर :उतनी सुन्दर नहीं पर मेरे लिए वही ( सानेट 130)
शेक्सपीयर द्वारा रचित मूल कविता My mistress' eyes are nothing like the sun ( Sonnet
130)
मेरी प्रियतमा की आँखें सुन्दर तो हैं सूरज तो नहीं उसके ओठो की लालिमा
मूंगे के आगे कुछ भी नहीं
...............
...............
मूल कविता इस प्रकार है :
My
mistress' eyes are nothing like the sun;
Coral is
far more red than her lips' red;
If snow
be white, why then her breasts are dun;
If hairs
be wires, black wires grow on her head.
I have
seen roses damasked, red and white,
But no
such roses see I in her cheeks;
And in
some perfumes is there more delight
Than in
the breath that from my mistress reeks.
I love to
hear her speak, yet well I know
That
music hath a far more pleasing sound;
I grant I
never saw a goddess go;
My
mistress, when she walks, treads on the ground.
And
yet, by heaven, I think my love as rare
As
any she belied with false compare.
उसके पहले ये देख लें की इस कविता में शेक्सपीयर ने क्या क्या कहना चाहा है
कविता और इसके अर्थ के बारे में दो शब्द
इस
कविता
की
भाषा
सरल
है
.
पर
शुरू
में
समझ
में
नहीं
आता
की
कवि
अपनी
महबूबा
के
तारीफ़
कर
रहा
है
या
उसका
मजाक
उड़ा
रहा
है
!
मैं
बताता
हूँ.
कवि
मजाक
उड़ा
रहा
है
. पर
अपनी
महबूबा
का
नहीं बल्कि
उन
कवियों
का
जो
किसी
की
सुन्दरता
का
बखान
करते
समय
अविश्वश्नीय
उपमाएं
देते
हैं.
जैसे,
आँखों
को
चमकीली
कहना
सही
है
पर
उन्हें
सूरज
की
तरह
चमकीली
कहना
अतिशयोक्ति
है
.
ऐसे
ही
अन्य
अतिशयोक्तियो
पर
इस
कविता
में
व्यंग्य
करते
हुए
आखिर
में
कवि
ये
कहकर
निष्कर्ष
पर
पहुचता
है
की
उसकी
महबूबा
लाखो
में
एक
है
पर असमान
चीजो
से
तुलना
करके
अगर
सुन्दरता का
बखान
किया
जाए
तो जैसे
वो
तुलनाएँ
झूठी
होंगी
तो
तारीफ
भी
झूठी
मानी
जाएगी
.या
इसे
ये
माना
जाएगा
की
आप
उस
सुन्दरता
को
झुठला
रहे
हैं
.
इस
कविता
को
समझने
में
कुछ
समस्याएँ
आएंगी
. जैसे,
तार
से
केश
की
तुलना
. आज
के
पाठक
जानते
हैं
की
तार
काले
भी हो
सकते
हैं
.भारतीय
पाठक
ये
भी
मानते
हैं
कि
काले
केश
होना
सुन्दरता
की
निशाने
है.
अतः
हमारे पाठकों
को
केश
की
तुलना
(काले
रंग
में
उपलब्ध
)तार
से
करना
और
सुन्दर
स्त्री
के
केश
काले
होना
दोनों
ही
चीजें
स्वाभाविक
लगेंगी
.
पर आप
को
ये
समझना
होगा
कि
वो
समय
जब
शेक्सपियरये
सानेट्स
लिख
रहे
थे
,हमारे
यहाँ
मुग़ल
शासक अकबर
और
महा
कवि
तुलसीदास का
युग
था. उस
समय
जो
तार
बनाते
थे
वो
सुनहले
होते
थे
. उनका
प्रयोग
जरी
के
काम
या
सजावट
में
होता
होगा
. तार
का
प्रयोग
बिजली
के
लिए
नहीं
किया
जाता
होगा
क्योकि
बिजली
का
तो
आविष्कार
ही
नहीं
हुआ
था
.
इसके
अलावा
वहाँ
सुन्दरता
के
मानदंड
अलग
थे
. सुन्दर
स्त्री
के
बाल
सुनहले
होने
चाहिए
ऐसी
मान्यता
थी
.इस
बातो
को
मैंने
अपनी
कविता
में
और
स्पष्ट
किया
है
.
दूसरी
बात
देवियों
की
चाल
के
बारे
में
है
. वहाँ
की
मान्यताओं
के
हिसाब
से
देविया
स्वर्ग
से
आकाश
मार्ग
से
आती
थीं
. इस
बात
को
जानने
के
बाद
धरती
पर
चलने
वाली
बात
का
अर्थ
साफ़
होगा
. मैंने
इस
बात
को
भी
अपनी
कविता
में
स्पष्ट
करने
का
प्रयास
किया
है
.अब
आप
मेरी
कविता
देखेँ
:
सानेट नं 130
वो सूरज नहीं बस सुन्दर है
मेरी प्रियतमा की आँखें
सुन्दर तो हैं सूरज तो नहीं
उसके ओठो की लालिमा
मूंगे के आगे कुछ भी नहीं
उसके अंगों का गोरापन
हिम के सदृश कैसे होगा
जो हिम को श्वेत कहा हमने
उनको धूसर
कहना होगा
केशो को तार कहूं कैसे
सब
तार सुनहरे होते हैं
किसने बनाए काले तार
क्या उसके सर पर उगते हैं
?
देखा है विविध गुलाबों को
कुछ बहुरंगी कुछ ,श्वेत ,लाल
ऐसा कुछ नजर नहीं आया
जब भी
देखे उसके गाल
सुगंध इतर फुलेल की
देती है लाख गुना खुशियाँ
उसकी उन साँसों
से जिससे
आती है
कोई बासी
हवा
उसकी बोली प्यारी लगती
पर मेरा ये
विचार है
उससे भी कई गुना प्यारी
संगीतों की झनकार है
मैंने कभी देखा ही
नहीं
कैसे चलती हैं देवियाँ
कहते हैं उनके कदमो के
नीचे
होता है
आसमां
पर मेरी प्रिया जब भी चली
पाँव पड़े थे धरती पर
उसकी भी चाल सुहानी है
देवियों सी नहीं मगर
फिर भी अपनी महबूबा को
लाखो में एक बताउंगा
ये बात तनिक भी झूठ
नहीं
मैं हर सौगंध
खाउंगा
पर झूठी उपमाए देकर
उसको नहीं झुठलाउन्गा...
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