चीनी सामानों का पहले विकल्प फिर बहिष्कार

चीनी सामानों का बहिष्कार करने की बात तब सोची जाने लगी जब चीनी उत्पाद  पूरे देश मे सस्ते दामों पर मिलने लगे और भारतीय उद्योग उनकी वजह से बंद होने लगे । वर्तमान मे चीन से साथ सीमा विवाद और गलवान  घाटी मे भारतीय सैनिकों की हत्या के बाद यह भावना  और भी जोर पकड़ने लगी  है .

लोगों  समझते हैं कि  चीनी समान चाहे कितने  सस्ते हों , बिना मुनाफे के तो नहीं  बेचे जाते होंगे । अब ये मुनाफा चीन के लिए भारी विदेशी मुद्रा का स्रोत  बन गया है । यही मुद्रा हमारे खिलाफ सैनिक तैयारियों मे इस्तेमाल की जा रही होगी.

भावनाएं तो चरम पर हैं ,पर क्या हम आज इस परिस्थिति मे हैं कि  आज से सारे चीनी सामानों का प्रयोग बंद कर दें ? केवल भारतीय उत्पाद खरीदें?पैसे वाले ऐसा कर सकते हैं । पर गरीब लोग 30 रुपए की चप्पल 100 रुपए मे ,और 10 रुपए की टार्च 50 रुपए मे चाहकर भी नहीं खरीद पाएंगे ।  .

तो रास्ता क्या है ?

रास्ता जानने के लिए इतिहास मे जाना होगा ।

जब गांधीजी ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया था तो खादी के रूप मे एक  विकल्प तैयार किया था।एक ऐसा विकल्प जो हर आदमी घर बैठे कर ले।असली दिमाग बहिष्कार करने में नही विकल्प तैयार करने में है वो भी कुटीर उद्योग के स्तर का विकल्प।

हमारी योजना मे पहला काम होगा उन सामानों की लिस्ट बनाने का जिनके  बिना हम रह सकते हैं । उस लिस्ट मे भी वही समान रखें जिन्हे कुटीर उद्योग से बना सकते हैं .

इस लिस्ट मे पहला नाम होगा बच्चों के खिलौनों और दूसरा चाइनीज मोबाइल ऐप का । तीसरा नाम होगा फर्नीचर का ।हमारे यहाँ महिलाएं खिलौने बना सकती हैं और नौजवान घर बैठे गेम्स डिजाइन कर सकते है । हम बैटरी से चलाने वाले खिलौनों की जगह आधुनिक गाड़ियों और बंदूकों की डिजाइन के सॉफ्ट ट्वायस बना सकते है। इन विधाओ को उन्नत और  प्रोत्साहित करने के लिए बस जरूरत है इन चीजों को पाठ्यक्रम मे शामिल करके इनकी डिग्री को मान्यता देने की और इनके उद्योगों को कुछ हजार रुपए ऋण देने की .

एक दूसरी लिस्ट बनें जिसमे वो चीजें हो जिनके लिए हम कच्चा माल चीन को देते हैं और तैयार माल चीन से खरीदते हैं। उनमे  सबसे ऊपर नाम होगा स्टील का .और भी कई चीजें हो सकती हैं जिनकी जानकारी एक अभियान के तहत सभी भारतवासियों से मांगी जा सकती है .

चाइना से को चीजें आती है वो जब खराब होती है तो हम उन्हें फेंककर नई खरीद लेते है।क्योंकि वे बहुत कम कीमत की होती है।हमें अब उनके मरम्मत और रीसाइक्लिंग पर जाना होगा। बिहार में लोक इसके उस्ताद है।जो प्रिंटर कोलकाता में फेंक दिया जाता है वो बिहार के छोटे शहरों मे रिपेयर हो जाता  है।हाल  में ही पुणे में किसी ने पुरानी ट्यूबलाइट को रिपेयर किया है ।एल ई डी  बल्ब तो बिहार  में10 रू में रिपेयर हो कर नए  बन जाते है।हम चाहें तो इस एक उद्योग का रूप देकर अपना धन बचा सकते हैं और चाइना से आयात कम कर सकते है। इसका भी प्रभाव वही होगा जो बहिष्कार का होगा .

कुछ चाइनीज चीजें हम सिर्फ फैशन  के नाम पर खरीद लेते हैं । जैसे योग मैट  जो स्किन फ़्रेंडली बिल्कुल नहीं है । जिम बाल,विभिन्न जिम के उपकरण जिनके विकल्प घर बैठे बन सकते हैं। उन चीजों को बंद करना होगा ।

इस चर्चा को यही विराम देता हूँ । कहने का सार ये है कि  बहिष्कार के कई  रास्ते है और बहिष्कार के अलावा भी  बहुत कुछ करना है .

यह एक सोच की शुरुआत है आप पाठकों के भी अपने आइडियाज होंगे । उन्हे यहाँ लिखकर साझा करें । आपका छुपा हुआ गया देश की मदद कर सकता है .


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