दुख की दास्तान
दुख के आने का
दुख के जाने का
दुख के आकर न जाने का
कोई नियम न है, न था, न होगा।
नियम बनाया गया
दुख के बाद सुख आएगा
इसके पीछे क्या था
थोड़ा अनुभव
ज्यादा आशावादिता
उससे भी कहीं ज्यादा
दुखी को यह बताकर
लुभाने की लालसा
क्योंकि दुखी हमेशा
साधन विहीन मरणासन्न नहीं होता
दुखी सब कुछ हार जाता है
दुख और सुख सर्वथा भिन्न नहीं हैं
साम्य रखते हैं कई
दुख में हमारे अपने दूर होते हैं
सुख में हम अपनों से दूरी बनाते हैं
दुख में दुख के बढ़ने का
सुख में सुख के घटने का
डर हमेशा घेरे रहता है,
कोई दुख से पागल होता है
तो किसी का सुख से सिर फिर जाता है,
अपने सुख का पता नहीं लगता
अपना दुख बहुत नजर आता है,
दुख में आँख खुलती है
सुख में आँख पर परदा पड़ जाता है,
दुख अपना हो तो दुख
दूसरे का हो तो सुख होता है
सुख अपना हो तो सुख
दूसरों का हो तो दुख देता है।
ज्यादा दुख और ज्यादा सुख -
पेट की नजर में एक हैं
एक में खाने की सुधि नहीं
दूसरे में खाने का स्वाद नहीं
नौजवान यह सोचकर डरता है
एक दिन यह सुन्दर संसार छूट जाएगा।
पर मौत अगर बिना बुलाए न आए
तो अन्तहीन बुढ़ापे का दर्द
सबसे आत्महत्या कराएगा
सुना है दिमाग जिन्दा रहता है
मरने के आधे घंटे बाद तक
उस दौरान हम क्या करेंगे
मरने का शोक यानि
और जीने की आस
मगर क्यों?
आगे भी तो नया जीवन है ...............
Comments
Post a Comment