कोरोना: रिकवरी रेट को कुल केसों की संख्या से क्यों तय किया जाता है ? फाइनल हुए केसों के आधार पर क्यों नहीं ?

हले आप इस प्रश्न को समझें फिर इसके उत्तर पर आएँगे .

आज तक के आंकड़ो के हिसाब से भारत में कोरोना के कुल 794842 मामले आज तक प्रकाश में आए हैं जिनमे  एक्टिव अर्थात इलाज में 277158 ,ठीक हो चुके रोगी यानि रिकवर्ड केस  495960  और मृत रोगी 21623 हैं.

इस प्रकार  रेकवर्ड केसों को संख्या 495960 है जो कुल मामलों की संख्या का 62.39 %  . इसे रिकवरी रेट कहा जाता है.

अब आप ये सवाल उठा सकते हैं कि  अभी तो सिर्फ 495960 + 21623= 517583 लोगों के इलाज का ही अंतिम फैसला हुआ है , कि  कोरोना संक्रमण के बाद ये  ज़िंदा बचे या मर गए . इस हिसाब से तो , जो 495960 ज़िंदा बचे लोग हैं वे कुल फैसला हुए केसेज का 96% हैं . बाकी भी इसी 96% की दर से आज न कल , स्वस्थ हो ही जाएंगे  .

फिर भी सरकार रिकवरी रेट की गणना फैसला हो चुके केसों के आधार पर न करके कुल केसों के आधार पर क्यों कर रही है .सरकार रिकवरी रेट को 96% न मानकर 62 %  क्यों मान रही है ?

अब आप सवाल समझ गए होंगे . अब इसका जवाब ढूँढते है.

रिकवरी रेट का उपयोग हमें आगे की योजना बनाने के लिए करना है न कि आज तक की उपलब्धि पर खुश होने के लिए .अगर हम पूरी संख्या  को आधार मानकर 62%  को लेते हैं तो हमें यह आभास होता  रहता है कि समस्या अभी बनी हुई है . 38% लोग अभी भी जिंदगी  और मौत के बीच हैं  .ये या तो मर गए है या मर सकते हैं अगर हम इनको न सम्हाल पाए  .

पूरी संख्या  को आधार मानने का दूसरा फायदा है कि जब इसके आधार पर निकाला हुआ रिकवरी रेट  96-97 पर पहुचेगा तब कोरोना समाप्त हो जाएगा .

 जबकि फैसला हुए केसों को आधार मानने पर इससे निकाला हुआ रिकवरी रेट जो अभी 96% है, अगर 99% पर भी पहुच जाए तो नए केस आते रहेंगे और कोविड- जारी रहेगा .

 


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