आत्महत्या का मजेदार सुकून: ग़ज़ल : अलविदा जिन्दगी
अलविदा ज़िंदगी
अनिल श्रीवास्तव
चलो अब ज़िंदगी के घर से विदा लेते है
मौत की मेहमाँ- नवाज़ी
का मज़ा लेते हैं
ज़िंदगी ने हमे मेहमाँ रखा
हसरतें दे के परेशाँ रखा
उनको पाने की इंतज़ारी मे
हमने बेचैन हर लम्हा रखा
आज बेचैनियो को
दूर भगा देते है
मौत की मेहमाँनवाज़ी
का मज़ा लेते हैं
इस जहाँ मे लोग आते है
कुछ हसीं ख़्वाबों को सजाते हैं
कोशिशे करते है लाखों लेकिन
जिसकी किस्मत हो वो ही पाते है
आज तक़दीरो का
फर्क मिटा देते हैं
मौत की
मेहमाँनवाज़ी का मज़ा लेते हैं
ज़िंदगी एक रवाँ कश्ती थी
आज उस पार ले के आई है
मौत पंखो वाली डोली है
आसमाँ से उतर के आई है
आज एक और सवारी
का मज़ा लेते हैं
मौत की
मेहमाँनवाज़ी का मज़ा लेते हैं
चलो अब ज़िंदगी के घर से विदा लेते है
मौत की मेहमाँ-
नवाज़ी का मज़ा लेते हैं
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