काश कसाब का एनकाऊंटर हुआ होता : चौक का नाई
चौक का नाई
अनिल श्रीवास्तव
अपने चौक का नाई
दिमाग का दही बनाता है
कैची और जुबान
एक साथ चलाता है
लोकल अखबारो से
चालू खबरें उठाता है
गर्दन कसे ग्राहकों को जबरन सुनाता है
मै भी उस्तरे और कैची की धार तले
सिर झुकाकर चुपचाप सुनता था
शायद वो मुझे भी अपना एक शागिर्द गिनता था
कल उसने एक निहायत बेवकूफी भरा सवाल उठाया
कसाब को जिन्दा क्यो रखा है, समझ मे नही आया
मैने कहा इतनी समझ होती तो कैची नही चलाते
तुम्हे क्या पता हम आतंकियों से क्या क्या उगलवाते
उनके गाँव-घर, उनके कैम्प उनके आकाओं के नाम
अब देखना उन्हे कहाँ छुपाएगा
पाकिस्तान
नाई मेरे जवाब से शरमाया घबराया फिर सम्भला
पूछा क्या भारत करनेवाला है पाक पर हमला
मैने कहा हम हमलावरों को सदा धूल चटाते हैं
पर पहले हमला नही करने की कसम निभाते हैं
विश्व समुदाय झुकता है हमारे सम्मान मे
कारगिल जीत लिया पर घुसे नही पाकिस्तान मे
नाई बोला फिर इतना पसीना क्यो बहाते हैं
जहाँ हमला नही करना उसका पता क्यो लगाते हैं
क्या सोचते हो, हमारी लड़ाई अमेरिका लड_नेवाला है?
ओबामा क्या रिश्ते मे मनमोहन जी का साला है?
नाई की बदतमीज़ी पर मै तिलमिलाया
फिर सब्र के साथ कोन्दालिज़ा का बयान सुनाया
नाई बोला ये राइस तो अपनी दाल गलाने आती है
दिल्ली मे खडी होके उनको धमकाती है
फिर इस्लामाबाद जाकर मरहम लगाती हैं
नादान हैं जो इन लोगों से दोस्ती
बढा_ते है
समझदार भाई लोग तो जूते बरसाते हैं
मै बोला आज तू महीने भर का अखबार पढ कर आया है
पर ये बता आतंकवाद से सबसे ज्यादा तू ही क्यो घबराया है
आतंकवादी आएंगे तो ताज़-ओबेराय को उड़ाएंगे
तेरे सडि_यल सैलून को हाथ भी नही लगाएंगे
नाई की कैची थम गई
चश्मे पर भाप - सी जम गई
रूमाल पहले आंख पर
फिर चश्मे पर फिराया
रून्धे गले को खखारा फिर बताया
मेरा बेटा जो मुम्बई मे कमाता था
इस हमले मे मैने उसको गँवाया
उसकी विधवा को और नन्ही बेटी को मै क्या दिलासा दिलाऊँ
ताज़ फिर से खुल गया क्या ये खुशखबरी सुनाऊँ
रोज मुझसे पूछती है हत्यारे को फाँसी कब होगी
मै कैसे उसे राष्ट्रीयता और वकील के विवाद समझाऊँ
क्या पता फाँसी होगी या कानून को तोड़ा मरोड़ा जाएगा
या किसी व्ही आई पी की फिरौती मे छोड़ा जाएगा
मेरी छोटी आमदनी से हम अब आधा पेट ही खाते है
उस क़साब को भर पेट खाना सरकारी लोग पहुचाते है
ताज़ टूटा फिर बन गया अब टाटा चैन से सोता है
जिसका बेटा नही रहा वो रात मे उठ के रोता है
मैने भीगी आँखों से नाई को गले लगाया
उसके हाथों को थाम कर एक भरोसा दिलाया
बन्दूक नही चला सकता पर कलम जरूर चलाऊंगा
तुम्हारा दर्द देश की संसद तक पहुचाउंगा
जब भी कुछ लिखने बैठता हूँ
उसका चेहरा सामने आता है
अपने चौक का नाई
दिमाग का दही बनाता है
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