गांधी कविता : एक जोड़ी चप्पल
एक जोड़ी चप्पल
अनिल श्रीवास्तव
कलेक्टर ने बाबुओ की बैठक बुलाई
दो अक्टूबर सिर पे है कुछ तो करो भाई
ऊपर से आदेश है गान्धीवाद जन-जन तक पहुचाना है
जितना पैसा बहा लो लेकिन कुछ प्रोग्रेस दिखाना है
एक बाबू ने डरते-डरते हाथ उठाया
सर गान्धीवाद क्या है आपने नही बताया
गान्धी के सिद्धान्तों पर सर, हो जाए थोडी
चर्चा
बिना जाने कैसे करेंगे लाखों का खर्चा
कलेक्टर ने कहा क्यो दिमाग खपाते हो
दीवाली मनाने क्या रामायण पढकर जाते हो
पटाखो और जुओ पर करते हो हज़ारो कुर्बान
रामचन्द्र जी लौट के आए, कभी सोचा है श्रीमान ?
फालतू के डिटेल मे हर्गिज़ मत जाओ
हनुमान जी जैसे रिजल्ट ओरिएंटेड हो जाओ
वो अपने तरीके से संजीवनी बूटी लाए थे
तुम अपने तरीके से गान्धीवाद लाओ
कलेक्टर की समझाइश सबके समझ मे आई
सभी विभागो ने फिर बडी तत्परता दिखाई
एक विभाग ने कूडे के मैदान की घेरी चारदिवारी
उसका नाम गान्धी मैदान रखने की हो गई तैयारी
बैनर बने झंडे लगे लाउडस्पीकर शामियाने आए
गान्धी प्रतिमा के नीचे मंत्रीजी के नाम गुदाए
स्कूलवालो ने गान्धीवाली फिल्मे दिखाई
गान्धीजी वहीं रह गए हिट हो गए मुन्नाभाई
सरकारी कार्यालयो ने खरीदे खादी के पर्दे और कालीन
लाखो के फंड हफ्ते- भर मे हो गए विलीन
इन घोटालो का ब्योरा जब कलेक्टर के
सामने आया
उसने कार्य की प्रगति पर काफी संतोष जताया
आपलोगो ने अपना फर्ज़ बखूबी निभाया है
एक और आईडिया अभी- अभी माइंड मे आया है
कल ही फोर्स लेकर गरीब बस्ती जाओ
मार-पीटकर अतिक्रमण हटाओ
गोलम्बर बनाकर बापू की प्रतिमा लगाओ
उसे अपने शहर का गान्धी चौक बनाओ
गरीबो की जमीन पर सरकारी डाका पड़ गया
सब जान ले के भागे पर एक मोची अड़ गया
डराया धमकाया फिर ललचाया फुसलाया
जब बाबू हार गए तो खुद कलेक्टर ही आया
नरमी दिखाकर बूढे को बोला दादा प्रणाम
क्या तुमने सुना नही गान्धीजी का नाम
मोची बोला गान्धीजी को तो पूजता है मेरा
पूरा खानदान
मुझ जैसो को उसने ही दिया हरिजनो का नाम
मेरा बाप आज भी चरखा चलाता है
शाकाहार संयम रामधुन मे रम जाता है
मुझे गान्धीवाद का गलत रास्ता मत दिखाओ
गान्धी तक पहुचना है तो एक जोडी चप्पले मुझसे ले जाओ
सत्य और अहिंसा इन दो चप्पलो के नाम है
इसकी चुभती कीले त्याग और बलिदान है
इन चप्पलो को पहनकर जो तुम खुद् चल पाएगा
वही देश की जनता को गान्धी का मार्ग दिखाएगा
वही देश की जनता को
गान्धी का मार्ग दिखाएगा
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