: शेक्सपियर : तुम्हारी आँखें सितारे, हम ज्योतिषी Sonnet 14


Not from the stars do I my judgement pluck

मूल कविता इस प्रकार है :

 

Not from the stars do I my judgment pluck,
And yet methinks I have astronomy;
But not to tell of good or evil luck,
Of plagues, of dearths, or seasons' quality;
Nor can I fortune to brief minutes tell,
Pointing to each his thunder, rain, and wind,
Or say with princes if it shall go well
By oft predict that I in heaven find.
But from thine eyes my knowledge I derive,
And, constant stars, in them I read such art
As truth and beauty shall together thrive
If from thyself to store thou wouldst convert:
Or else of thee this I prognosticate,
Thy end is truth's and beauty's doom and date.

इस कविता में कवि ने सबसे पहले कहा कि मैं  थोड़ा -थोड़ा भविष्य जानता हूँ . फिर बड़े नाटकीय ढंग से अलग अलग उदहारण देते हुए बताया कि मैं ज्योतिष होने के बावजूद ये-ये चीजे   मैं   नहीं बता सकता . अंत में बड़े रहस्यमय और अप्रत्याशित अंदाज में  यह भविष्यवाणी की कि अगर आज के युवा ऐसे ही अकेले अविवाहित स्वच्छंद जीवन बिताते रहे तो  भविष्य में अनर्थ होने वाला है  जिसे वो जैसे भी हो, रोकें .

शेक्सपियर ने युवाओं की आँखों के बारे में दो बाते इस सानेट में कही हैं  .पहला ये की ये सुन्दर आँखे है और इनमे सच्चाई और सुन्दरता झलकती है. दूसरा ये की ये इतनी स्थिर है की ये उन तारो के सामान है जिनसे ज्योतिष गणना कर सकते है. मैंने अपनी समझ से इस स्थिर शब्द का आशय हठी और आत्मकेंद्रित होना लगाया है जिससे इस कविता के  सन्देश का  प्रवाह सुगम हो गया है .

 अंत में देखिये इस विचार को मैंने अपनी कविता शैली में कैसे व्यक्त करने का प्रयास किया है :


 

सानेट 14

मेरा बिन तारों का ज्योतिष

आज  का  आलम ये  है

तो कल का मंज़र क्या होगा

मैं बताता हूँ

मैं नहीं देखता तारे

पर अपने  अन्दर प्यारे

ज्योतिष को पाता  हूँ

 

मैं नहीं कहूंगा पूछ लो

पूरा भविष्यकाल

कौन  बनेगा धन्नासेठ

कौन रहेगा फटेहाल

कब  प्लेग पाँव फैलाएगा

कब  सूखा तुम्हें तरसाएगा

 

मौसम की बारीकियाँ

बारिश बिजली तेज हवा

ऐसी बातें दुनिया भर की

मैं कुछ भी नहीं बताता हूँ

जान पाऊं  ग्रहदशा से

भाग्योदय  का साल

या ललाट की रेखाओं से

मन की लहरों  की उछाल

मेरे बस का रोग नहीं

ब्रह्माण्ड का विश्लेषण

राजाओं की  कामना  सिद्धि

जैसे  दिव्य भविष्यकथन

आकाश के स्थिर तारो से

ज्ञानी करते हैं आकलन

मेरी गणना के  तारे

केवल तुम्हारे दो नयन

सच्चाई और सुन्दरता का

जिनमे  है  अद्भुत संगम

अडिग - अड़ियल तारों जैसी

इन आँखों की मनमानी है

उनकी नज़रो में बस तुम हो

बाकी दुनिया बेमानी है

अटल तारो को देख देख

शगुन निकाले  जाते हैं

अचल आँखों को पढ़ कर

हम अपनी राय सुनाते हैं

 

आँखों की जड़ता जुड़ी

काले कल की कहानी से

ये हमें आगाह कर रहीं

आत्मकेंद्र की हानि से

युवा तू  सोच  जरा

तू आज तो है

कल रहेगा क्या ?

इस कुवारेपन में तू अगर

सीमित-संतुष्ट - मगन रहे

कल तेरे बाद भी तू रहे

ऐसा कोइ जतन करे

 

तेरी  सच्चाई सुन्दरता

कैसे कल भी  कायम रहे

तेरी आँखें आज से हटकर

कल पर  डालें एक नज़र

एक वारिस  दुनिया को दे

तू अपने जैसा  ही सुन्दर

 

जिसकी छोटी प्यारी आँखे

बन जाएँ ऐसा आशियाना

सच्छाई - सुन्दरता जिसमे

कर लें अपना नया ठिकाना

 

आज की दुनिया देख रही है

तेरे रंग रूप रोजाना

आगे की पीढी भी पाए

ये संचित अनमोल खजाना

 

वरना तेरे  बाद होगा

सत्यसौंदर्य का ये गठबंधन

तेरी  मृत्यु के दिन ही होगा

             इनके भी प्रलय का क्रंदन !

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