मार्मिक कविता : माँ
माँ अनिल श्रीवास्तव मॉ ,अभी तुम कहॉ होगी ? पहाड़ों के पीछे ? बादलों के उपर ? असंख्य तारों के बीच ? या ठीक मेरे पीछे अदृष्य.. शांत... स्नेहिल.... क्या सोचती होगी ? क्या चाहती होगी ? रोती ही रहती होगी , या संसार को मिथ्या जानकर सारे दु:ख भूल गई होगी ? देवियों सी शक्ति पाई होगी ? या बिलकुल ही निष्प्राण होगी ? सतत गतिमान होगी ? या जड् होकर मुझे देख रही होगी अपलक.. अनवरत ...असहाय ! फिर मैने कई बार श्रवण बनने का मन बनाया पर नित्य के बन्धनों से समय कभी न मैने पाया तेरी गोदी मे अकेले बैठने मैने भाई को धक्का मारा तेरे इलाज़ की बारी आई मैने भाई का मुँह निहारा क्यो नही होता समय बेटे के पास कैसे माँ कर लेती है जीवन-भर इंतज़ार मृत्यु के क्षण भी माँ क्यो नही कहती मेरा रह गया है तुझपर उधार मेरे बुखार मे रात भर पलक नही झपकाई मुझे भूख नही लगी तो तू भी नही खाई तू भी तो बीमार हुई मेरे नौकरी पर जाने के बाद रोज हाल पूछता था मै भी पर शाम को