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Showing posts with the label हिंदी साहित्य

मार्मिक कविता : माँ

माँ अनिल श्रीवास्तव   मॉ ,अभी तुम कहॉ होगी ? पहाड़ों के पीछे ? बादलों के उपर ? असंख्य तारों के बीच ? या ठीक मेरे पीछे अदृष्य.. शांत... स्नेहिल....   क्या सोचती होगी ? क्या चाहती होगी ? रोती ही रहती होगी , या संसार को मिथ्या जानकर सारे दु:ख भूल गई होगी ?   देवियों सी शक्ति पाई होगी ? या बिलकुल ही निष्प्राण होगी ? सतत गतिमान होगी ? या जड्­ होकर मुझे देख रही होगी   अपलक.. अनवरत ...असहाय !     फिर मैने कई बार श्रवण बनने का मन बनाया पर नित्य के बन्धनों से   समय कभी न मैने पाया   तेरी गोदी मे अकेले बैठने मैने   भाई को धक्का मारा तेरे इलाज़ की बारी आई मैने भाई का   मुँह निहारा     क्यो नही होता समय बेटे के पास कैसे माँ कर लेती है जीवन-भर इंतज़ार मृत्यु के क्षण भी माँ क्यो नही कहती मेरा रह गया है तुझपर उधार     मेरे बुखार मे रात भर पलक नही झपकाई मुझे भूख नही लगी तो तू भी नही खाई   तू भी तो बीमार हुई मेरे नौकरी पर जाने के बाद रोज हाल पूछता था मै भी पर   शाम को

हम न्यूज देखने बैठते हैं वो विज्ञापन दिखाने बैठते हैं ---कविता : ब्रेक के बाद

 ब्रेक के बाद  अनिल श्रीवास्तव हम है न्यूज   चैनल   वाले खबरो के व्यापारी खबरो से खरबो कमाना ख्वाहिश है हमारी     खबरे हमारी खिचड़ी   है अपराधो- घोटालो की साथ मे चटनी रहती है ग्लैमर   के   मसालो   की   विकास दर   डूब रही है छोड़िये   इस बात को सी सी टी वी मे देखते है क्या हुआ उस रात को   ग्राम सुधार शिक्षा कृषि बेकार की है बात सोचिये शरद ने सोनिया से क्यो की मुलाकात   कबड्डी   कुश्ती शतरंज इनको क्या दिखाना चोटी किसने काटी हमे है   पता लगाना     सिद्धू क्यो   टीवी का करार   तोड़ते नही विश्वास क्यो केजरीवाल को छोड़ते नही नार्थ कोरिया अमरीका को कितना चिढ़ाएगा चीन अपनी आदत से कब बाज़ आएगा   पाकिस्तान फौज की गिरफ्त से कब होगा   आजाद सब हम ही बतलाएंगे बस एक ब्रेक के बाद   ब्रेक मे गुटका चलता है   इलाइची के नाम से आर्थाइटिस गायब   एक पल मे झंडू बाम से   टूथपेस्ट का नाम डाक्टर से पूछा कीजिये सर्दी सरदर्द खाँसी बुखार हो खुद ही दवा लीजिये     घी मे कोलेस्ट्राल है मिनरल मिश्रित है सरसो तेल   सबसे शुद्ध है पा

पानी को पानी की तरह न बहाएं :कविता : नल बहता है तो बहने दे ..

नल बहता है तो बहने दे अनिल श्रीवास्तव

काश कसाब का एनकाऊंटर हुआ होता : चौक का नाई

चौक का नाई अनिल श्रीवास्तव अपने चौक का नाई दिमाग का दही बनाता है कैची और जुबान एक साथ चलाता है लोकल अखबारो से चालू खबरें उठाता है गर्दन कसे ग्राहकों को जबरन सुनाता है   मै भी उस्तरे और कैची की धार तले सिर झुकाकर चुपचाप सुनता था शायद वो मुझे भी अपना एक शागिर्द गिनता था   कल उसने एक निहायत बेवकूफी भरा सवाल उठाया कसाब को जिन्दा क्यो रखा है, समझ मे नही आया   मैने कहा इतनी समझ होती तो कैची नही चलाते तुम्हे क्या पता हम आतंकियों से क्या क्या उगलवाते उनके गाँव-घर, उनके कैम्प उनके आकाओं के नाम अब देखना उन्हे कहाँ   छुपाएगा पाकिस्तान नाई मेरे जवाब से शरमाया घबराया फिर सम्भला पूछा क्या भारत करनेवाला है पाक पर हमला   मैने कहा हम हमलावरों को सदा धूल चटाते हैं पर पहले हमला नही करने की कसम निभाते हैं विश्व समुदाय झुकता है हमारे सम्मान मे कारगिल जीत लिया पर घुसे नही पाकिस्तान मे   नाई बोला फिर इतना पसीना क्यो बहाते हैं जहाँ हमला नही करना उसका पता क्यो लगाते हैं क्या सोचते हो, हमारी लड़ाई अमेरिका लड_नेवाला है? ओबामा क्या रिश्ते मे मनमोहन जी

गांधी कविता : एक जोड़ी चप्पल

एक जोड़ी चप्पल अनिल श्रीवास्तव कलेक्टर ने बाबुओ की बैठक बुलाई दो अक्टूबर सिर पे है कुछ तो करो भाई ऊपर से आदेश है गान्धीवाद जन-जन तक पहुचाना है जितना पैसा बहा लो लेकिन कुछ प्रोग्रेस दिखाना है एक बाबू ने डरते-डरते हाथ उठाया सर गान्धीवाद क्या है आपने   नही बताया गान्धी के सिद्धान्तों पर सर , हो जाए थोडी चर्चा बिना जाने कैसे करेंगे लाखों का खर्चा   कलेक्टर ने कहा क्यो दिमाग खपाते हो दीवाली मनाने क्या रामायण पढकर जाते हो पटाखो और जुओ पर करते हो हज़ारो कुर्बान रामचन्द्र जी लौट के आए , कभी सोचा है श्रीमान ?   फालतू के डिटेल मे हर्गिज़ मत जाओ हनुमान जी जैसे रिजल्ट ओरिएंटेड हो जाओ   वो अपने तरीके से संजीवनी बूटी लाए थे   तुम अपने तरीके से गान्धीवाद लाओ   कलेक्टर की समझाइश सबके समझ मे आई सभी विभागो ने फिर बडी तत्परता दिखाई   एक विभाग ने कूडे के मैदान की घेरी चारदिवारी उसका नाम गान्धी मैदान रखने की हो गई तैयारी बैनर बने झंडे लगे लाउडस्पीकर शामियाने आए गान्धी   प्रतिमा के नीचे मंत्रीजी के नाम गुदाए स्कूलवालो ने गान्धीवाली फिल्मे दिखाई गान्धीजी वह

आत्महत्या का मजेदार सुकून: ग़ज़ल : अलविदा जिन्दगी

अलविदा ज़िंदगी अनिल श्रीवास्तव चलो   अब ज़िंदगी के घर से विदा लेते है मौत की मेहमाँ- नवाज़ी का मज़ा लेते हैं   ज़िंदगी ने हमे मेहमाँ रखा हसरतें दे के परेशाँ रखा उनको पाने की इंतज़ारी मे हमने बेचैन हर लम्हा रखा   आज बेचैनियो को दूर भगा देते है मौत की मेहमाँनवाज़ी का मज़ा लेते हैं   इस जहाँ मे लोग आते है कुछ हसीं ख़्वाबों को   सजाते हैं कोशिशे करते है लाखों लेकिन जिसकी किस्मत हो वो ही पाते है आज तक़दीरो का फर्क मिटा देते हैं मौत की मेहमाँनवाज़ी का मज़ा लेते हैं     ज़िंदगी एक रवाँ कश्ती   थी आज उस पार ले के आई है मौत पंखो वाली डोली है आसमाँ से उतर के आई है आज एक और सवारी का मज़ा लेते हैं मौत की मेहमाँनवाज़ी का मज़ा लेते हैं चलो   अब ज़िंदगी के घर से विदा लेते है मौत की मेहमाँ- नवाज़ी का मज़ा लेते हैं